Sunday, May 13, 2012

माँ

मैं जब भी तनहा होता हूँ.. वो ज़ुल्फ़ो को सहलाती है.. कर दूर अंधेरा जीवन का... मुझको रोशन कर जाती है... मेरे आने क़ि उम्मीदों में.. वो पलकें रोज़ बिछाति है.. हर इक दस्तक की आहट पे... वो दरवाजे तक जाती है.. राहों से काटें चुन चुन कर... वो फूल वहाँ रख जाती है.. मैं आगे बढ़ता जाता हूँ ..वो मन ही मन हर्षाति है.. मेरे चेहरे की एक शिकन पे..वो अपना चैन लुटाती है.. भीगी पलकें देख मेरी वो सीने से लग जाती है कर लाख जतन.. वो कैसे भी.. मुझो हर खुशी दिलाती है.. वो "माँ" ही है जो मेरे लए अक्सर भूकि सो जाती है...