Tuesday, September 25, 2012

यहाँ अब कौन आता है... ?.






किसी शोहरत की खातिर वास्ता मुझसे रखा ..वरना

मेरी लिक्खी .. ग़ज़ल को गुन - गुना ने कौन आता है...



अरे महफ़िल के परवानो ...ज़रा मूह फेर कर देखो.....

ये गम की दास्तां सुन..ने-सुनाने कौन आता है...



2 - 4 पल की रौनको से, भूले में मत आना...

यहाँ तन्हाई में गुज़रे ज़माने.. कौन आता है...



मैं इक काग़ज़ के टुकड़े को  लिए कई अर्सों से बैठा हूँ...

की ये बेरंग सी तस्वीर.... भरने कौन आता है...



ठोकर लगी जो राह में, मेरी मज़िल बदल गयी,

यहाँ बुझती हुई शम्मा जलाने कौन आता है...



उसी काफ़िर सनम की चाह में..मैं अब दरियाँ में फिरता हूँ..

मेरी टूटी हुई, कश्ती डूबने कौन आता है...





उसकी यादों के चलते, अपनी खुदी को भूल जाता हूँ...

यहाँ सोफी में रह कर, लड़खड़ाने कौन आता है...



ये सन्नाटे भारी आवाज़ मेरी रहनुमा है बॅस....

मेरी दहलीज़ पे अब मुस्कुराने कौन आता है...



यही सोच कर आए ज़िंदगी, मैं शिक़वे नही करता....

की इस रूठे हुए दिल को मनाने कौन आता है,...



मैं तो खामोश था, पर ये सोच कर इज़हार कर बैठा...

की अपने बीच का परदा गिराने कौन आता है....



वो सब कुछ जान कर भी मुझको, हर इल्ज़ाम दे गया...

की यहाँ मेरी.. वफ़ा को आज़माने, कौन आता है...





इसी उम्मीद से अपनी ग़ज़ल हम कह-के निकले हैं,

भले झूठी सही.. मगर तारीफ करने.. कौन आता है...



बॅस यही मालूम करने..,आज..दुनिया से ली रुखसत....

की मेरी कब्र पर, आँसू बहाने कौन आता है..



यहाँ अब कौन आता है... ?.