Wednesday, December 26, 2012

वो कुछ मेरे जैसा है...

मेरे जैसे कई चेहरे हैं...दुनिया की इस भीड़ में...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
मिल जाते हैं अक्सर मुझको... सूरत से पहचानने वाले.....
जो मेरी सीरत पहचाने.... वो कुछ मेरे जैसा है....

मेरे घर में अजनाबीयों का..  दर -रोज़ ही मेला लगता है...
मिट्टी के दामों पर देखो... इंसान यहाँ पर बिकता है...
अपने -गैरों की भीड़ लगी है...जिसकी जेब में पैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...

मैं "दीवाना" हूँ...दुनिया में.."दीवाना" बनकर रहता हूँ..
मैं बेगानी इस महफ़िल में अब्दुल्ला बनकर फिरता हूँ....
ए मेज़बान आ देख के इस... महफ़िल का मंज़र कैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है...वो कुच्छ मेरे जैसा है...

अपने होने का मकसद ढूंदे...2-4 पलों की मस्ती में.
बाज़ारों की सुर्ख रोशनी...रहती है इस बस्ती में...
इस चका-चौंध में जो ना खोए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...

रिंदों की महफ़िल में बर्बादी का...दिन रैन ही जशन मानता हूँ...
गैर के घर रौशन करने को..अपना घर फूँक के आता हूँ...
इस हाल में मुझको जो अपनाए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...

 

Thursday, December 20, 2012

फिर भी मैं आबाद हूँ..


भोली सी मुस्कान की... एक भूली बिसरी याद हूँ...
पत्थर की दुनिया में रहकर.... फिर भी मैं आबाद हूँ..
पौ फटने से शाम ढले तक.. चारों ओर फरेबी है....
होठों पे मुस्कान रखी पर.. दिल में ज़रा खराबी है
बाहर सुरूर हज़ारों हैं... पर भीतर मैं नाशाद हूँ...
पत्थर की दुनिया में रहकर.... फिर भी मैं आबाद हूँ..

धुंध भारी रातों में अक्सर तारे ढुंडा करती हैं...
आते जाते हर चेहरे में...कोई इंसान ढुंडा करती हैं...
उन आँखों में छुपि हुई.. इक छोटी सी फरियाद हूँ ...
पत्थर की दुनिया में रहकर.... फिर भी मैं आबाद हूँ..

बे-ईमान  ख्वाइशों की खातिर.. ... अपना ईमान गँवा बैठा...
आदम की औलाद जहाँ में... इब्लीस का नाम कमा बैठा...
खुदसे शर्मिंदा हूँ क्यूंकी... मैं भी आदम-जाद हूँ...
पत्थर की दुनिया में रहकर.... फिर भी मैं आबाद हूँ..