तेरे साथ रह कर अक्सर ये गुमान होता है...
तू मुझसे दूर कहीं जा रहा है जैसे...|
मिला भी तो यूँ अजनबी सा तकल्लुफ लेकर...
अपनी यादों से मेरा नक्श मिटा रहा है जैसे...||
मेरी आँखों के हर इक हर्फ को पढ़ने वाला...
जहन पे उनसियत का पर्दा गिरा रहा है जैसे....|
वो मेरा हम-सफ़र कुछ इस तरह रुख़ फेर चला है...
अपने "रिंदों" में मेरी पहचान बना रहा है जैसे...||