यार को दिल में बसा, दीदार की ख्वाइश भी ना कर...
इश्क़ को इश्क़ रहने दे उसकी नुमाइश भी ना कर....
वो जो तेरा है तो फिर लौट के आ जाएगा.....
खुदा से फिर दुआ में उसकी फरमाइश भी ना कर....
गर इश्क़ को समझा है इबादत के काबिल,
तो "इश्क़" में चाहत की गुंजाइश भी ना कर..
इश्क़ साबित है फकत यार के मुस्कुराने से..
फिर इश्क़ की महफ़िल में आज़माइश भी कर,..||
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