मेरे जैसे कई चेहरे हैं...दुनिया की इस भीड़ में...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
मिल जाते हैं अक्सर मुझको... सूरत से पहचानने वाले.....
जो मेरी सीरत पहचाने.... वो कुछ मेरे जैसा है....
मेरे घर में अजनाबीयों का.. दर -रोज़ ही मेला लगता है...
मिट्टी के दामों पर देखो... इंसान यहाँ पर बिकता है...
अपने -गैरों की भीड़ लगी है...जिसकी जेब में पैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
मैं "दीवाना" हूँ...दुनिया में.."दीवाना" बनकर रहता हूँ..
मैं बेगानी इस महफ़िल में अब्दुल्ला बनकर फिरता हूँ....
ए मेज़बान आ देख के इस... महफ़िल का मंज़र कैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है...वो कुच्छ मेरे जैसा है...
अपने होने का मकसद ढूंदे...2-4 पलों की मस्ती में.
बाज़ारों की सुर्ख रोशनी...रहती है इस बस्ती में...
इस चका-चौंध में जो ना खोए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
रिंदों की महफ़िल में बर्बादी का...दिन रैन ही जशन मानता हूँ...
गैर के घर रौशन करने को..अपना घर फूँक के आता हूँ...
इस हाल में मुझको जो अपनाए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
मिल जाते हैं अक्सर मुझको... सूरत से पहचानने वाले.....
जो मेरी सीरत पहचाने.... वो कुछ मेरे जैसा है....
मेरे घर में अजनाबीयों का.. दर -रोज़ ही मेला लगता है...
मिट्टी के दामों पर देखो... इंसान यहाँ पर बिकता है...
अपने -गैरों की भीड़ लगी है...जिसकी जेब में पैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
मैं "दीवाना" हूँ...दुनिया में.."दीवाना" बनकर रहता हूँ..
मैं बेगानी इस महफ़िल में अब्दुल्ला बनकर फिरता हूँ....
ए मेज़बान आ देख के इस... महफ़िल का मंज़र कैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है...वो कुच्छ मेरे जैसा है...
अपने होने का मकसद ढूंदे...2-4 पलों की मस्ती में.
बाज़ारों की सुर्ख रोशनी...रहती है इस बस्ती में...
इस चका-चौंध में जो ना खोए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...
रिंदों की महफ़िल में बर्बादी का...दिन रैन ही जशन मानता हूँ...
गैर के घर रौशन करने को..अपना घर फूँक के आता हूँ...
इस हाल में मुझको जो अपनाए...वो कुछ मेरे जैसा है...
भीड़ में रहकर तन्हा जो है.. वो कुछ मेरे जैसा है...