Sunday, October 21, 2012

ज़माना खराब लगता है..




उनके ख्वाबो से मेरा पुराना हिसाब लगता है...

नींद से जागूं तो ये.. ज़माना खराब लगता है..



आज सोफी में भी इश्क़ बेनक़ाब लगता है..

पी कर आए हैं.. कहीं से शराब लगता है..







परदनशीन है वो.. मगर लाजवाब लगता है...

बंद शीशे में जैसे कोई माहताब लगता है...


खुदा का ज़िक्र तो हम भी किया करते थे मगर..

किसी बात पर रूठे हैं जनाब लगता है...

मेरी दुआ को.. हँसी में टाल देता है...

मेरा रह-बर् भी हाज़िर जवाब लगता है...





वो जो दोस्ती का दम भरा करते थे...

आज बैठे हैं.. बन कर नवाब लगता है..

जिनके होने से हम भी शाह हुआ करते थे...

उनके जाने पे.. ये ज़माना खराब लगता है...



उनके ख्वाबो से मेरा पुराना हिसाब लगता है...

नींद से जागूं तो ये.. ज़माना खराब लगता है..

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