कुच्छ इस रफ़्तार से बढ़ चला मैं ज़िंदगी की राह में,
मैं खुद से पीछे रह गया आगे निकलने की चाह में,,||
वो दोस्त पीछे रह गया जो साथ मेरे चलता था,
वो यार पीछे रह गया जो इश्क़ मुझसे करता था,
मेरे रास्ते ही बदल गये मेरी ज़िंदगी की राह में,
मैं खुद से पीछे रह गया आगे निकालने की चाह में,,||
दस्तूर मेरा बन गया, सफ़र हर रोज़ का,
क्या ख़त्म होगा किसी रोज़, सिलसिला मेरी खोज़ का,
मेरी मंज़िल भी पीछे रह गयी, मेरी ज़िंदगी की राह में,
मैं खुद से पीछे रह गया आगे निकालने की चाह में,,||
Wednesday, March 2, 2011
मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया
मैने मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया, जो भी दर खाली मिला उसे घर बना लिया,
चाहा था तुझको फिर कभी पहचान ना सकूँ, इस चाह में खुद को भी अजनबी बना लिया..||
मैं सोचता हूँ तुझसे इस्तक्बाल क्यूँ हुआ, यूँ मुझको तुझसे मिलने का ख़याल क्यूँ हुआ...
हैरत नही की तू मुझे अब चाहता नही, हैरत नही की तू मुझे पहचानता नही,
तू है कहीं ये सोच कर दिल को माना लिया, मैने मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया..||
चाहा था तुझको फिर कभी पहचान ना सकूँ, इस चाह में खुद को भी अजनबी बना लिया..||
मैं सोचता हूँ तुझसे इस्तक्बाल क्यूँ हुआ, यूँ मुझको तुझसे मिलने का ख़याल क्यूँ हुआ...
हैरत नही की तू मुझे अब चाहता नही, हैरत नही की तू मुझे पहचानता नही,
तू है कहीं ये सोच कर दिल को माना लिया, मैने मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया..||
मेरी खता क्या है??
मैं तुझसे पूछता हूँ मेरी खता क्या है??
क्यूँ मुझसे रूठ के बैठा है, तुझे पता क्या है?? |
मैं खुद को तुझ पे वार के फ़क़ीर हो गया...
तू पूछता है, "मैने किया अता क्या है??"
क्यूँ मुझसे रूठ के बैठा है, तुझे पता क्या है?? |
मैं खुद को तुझ पे वार के फ़क़ीर हो गया...
तू पूछता है, "मैने किया अता क्या है??"
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..
लबों ने तेरे इश्क़ का तराना छोड़ दिया, आगाज़ तुझसे जो हुआ, वो फसाना छोड़ दिया..|
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..कुछ रोज़ से मैने भी सवरना छोड़ दिया..||
इक वक़्त सिर्फ़ तू ही था, लक्ष्य ज़िंदगी का, अब बंद कर निगाहें तेरा निशाना छोड़ दिया..|
तेरे दीदार को जाता रहा मzजिदो में हरसूँ, कुछ रोज़ से मैने भी ये बहाना छोड़ दिया..||
पूछ कर मुझसे मेरा इस्तक्बाल, महफ़िल में तूने मुझे बेगाना छोड़ दिया..|
इक रोज़ तू ही था मेरे हर्फ आशना, तेरे जाने से मैने भी ये जमाना छोड़ दिया..||
तू इस कदर खोया कहीं शोर -ए-जहाँ में, मैने भी हार कर तुझे बुलाना छोड़ दिया..|
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही, मैने भी कुछ रोज़ से सवरना छोड़ दिया....||
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..कुछ रोज़ से मैने भी सवरना छोड़ दिया..||
इक वक़्त सिर्फ़ तू ही था, लक्ष्य ज़िंदगी का, अब बंद कर निगाहें तेरा निशाना छोड़ दिया..|
तेरे दीदार को जाता रहा मzजिदो में हरसूँ, कुछ रोज़ से मैने भी ये बहाना छोड़ दिया..||
पूछ कर मुझसे मेरा इस्तक्बाल, महफ़िल में तूने मुझे बेगाना छोड़ दिया..|
इक रोज़ तू ही था मेरे हर्फ आशना, तेरे जाने से मैने भी ये जमाना छोड़ दिया..||
तू इस कदर खोया कहीं शोर -ए-जहाँ में, मैने भी हार कर तुझे बुलाना छोड़ दिया..|
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही, मैने भी कुछ रोज़ से सवरना छोड़ दिया....||
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