Wednesday, March 2, 2011

मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया

मैने मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया, जो भी दर खाली मिला उसे घर बना लिया,

चाहा था तुझको फिर कभी पहचान ना सकूँ, इस चाह में खुद को भी अजनबी बना लिया..||



मैं सोचता हूँ तुझसे इस्तक्बाल क्यूँ हुआ, यूँ मुझको तुझसे मिलने का ख़याल क्यूँ हुआ...

हैरत नही की तू मुझे अब चाहता नही, हैरत नही की तू मुझे पहचानता नही,

तू है कहीं ये सोच कर दिल को माना लिया, मैने मसरूफ़ियत को अपनी आदत बना लिया..||

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