लबों ने तेरे इश्क़ का तराना छोड़ दिया, आगाज़ तुझसे जो हुआ, वो फसाना छोड़ दिया..|
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..कुछ रोज़ से मैने भी सवरना छोड़ दिया..||
इक वक़्त सिर्फ़ तू ही था, लक्ष्य ज़िंदगी का, अब बंद कर निगाहें तेरा निशाना छोड़ दिया..|
तेरे दीदार को जाता रहा मzजिदो में हरसूँ, कुछ रोज़ से मैने भी ये बहाना छोड़ दिया..||
पूछ कर मुझसे मेरा इस्तक्बाल, महफ़िल में तूने मुझे बेगाना छोड़ दिया..|
इक रोज़ तू ही था मेरे हर्फ आशना, तेरे जाने से मैने भी ये जमाना छोड़ दिया..||
तू इस कदर खोया कहीं शोर -ए-जहाँ में, मैने भी हार कर तुझे बुलाना छोड़ दिया..|
ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही, मैने भी कुछ रोज़ से सवरना छोड़ दिया....||
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