Wednesday, March 2, 2011

ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..

लबों ने तेरे इश्क़ का तराना छोड़ दिया, आगाज़ तुझसे जो हुआ, वो फसाना छोड़ दिया..|

ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही..कुछ रोज़ से मैने भी सवरना छोड़ दिया..||



इक वक़्त सिर्फ़ तू ही था, लक्ष्य ज़िंदगी का, अब बंद कर निगाहें तेरा निशाना छोड़ दिया..|

तेरे दीदार को जाता रहा मzजिदो में हरसूँ, कुछ रोज़ से मैने भी ये बहाना छोड़ दिया..||



पूछ कर मुझसे मेरा इस्तक्बाल, महफ़िल में तूने मुझे बेगाना छोड़ दिया..|

इक रोज़ तू ही था मेरे हर्फ आशना, तेरे जाने से मैने भी ये जमाना छोड़ दिया..||



तू इस कदर खोया कहीं शोर -ए-जहाँ में, मैने भी हार कर तुझे बुलाना छोड़ दिया..|

ये सोच कर की अब "तू" मुझे पहचानता नही, मैने भी कुछ रोज़ से सवरना छोड़ दिया....||

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