बेरूख़ी से.. बस ये काम किए जा रहा हूँ मैं....
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||
तेरी इनायतों से हैं... या हैं.. मेरे नसीब से..
ऱक्खे हैं इन आँखों में कुछ आँसू अजीब से...|
हर आँसू को आँखों में पिए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||
मेरे इश्क़ को इबादत का कहीं नाम मिल गया...
फिर इश्क़ को आशिक़ी का भी इल्ज़ाम मिल गया...|
ये इल्ज़ाम भी खुद पे ही लिए जा रहा हूँ मैं....
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं...||
कशिश कोई ऐसी भी है.. मेरे जीने में अभी... बाकी
ना चाहते हुए भी... तन्हा हूँ मैं ..ए साकी...|
जैसे सज़ा मुक़म्मल कोई लिए जा रहा हूँ मैं..
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||
मेरे हर इक सजदे में बस तेरा ही ज़िक्र हो...
ए...मेरे खुदा तुझको भी कभी... मुझसा ही इश्क़ हो..|
खुदा को इश्क़... और इश्क़ को ईमान... किए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||
इश्क़ में किस्मत के मुबारक सितम सभी...
ए दोस्त हौंसला यहाँ मुझ मे भी कम नही ...|
ज़ख़्म खुद के खुद से ही सीए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....
खुद को मिटा के जीने की.. इक चाहत हुई मुझको...
फिर खैर-ए-सनम को जीने की आदत लगी मुझको..|
खुद को.. इसी आदत पे दिए जा रहा हूँ मैं
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||
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