Friday, December 31, 2010

Iss saal mein vo baat ho...

Wanted some thing original this new year.. so just penned down a few scentences.....


Iss saal mein vo baat ho.....

इस साल में वो बात हो.....


तेरी आरज़ू, तेरी जुस्त्जू,तू रहे सदा मेरे रूबरू,
चाहे कोई भी कायनात हो...ए हमसफ़र तेरा साथ हो...

तेरी चाहतों में डूब लूँ..तेरा नक्श खुद में उतार लूँ..
तुझे देखते मेरा दिन ढले, तेरे ख्वाबो में मेरी रात हो,
इस साल में वो बात हो...

ये इरादे अपने कर सकूँ, तेरे रास्तों पे मैं चल सकूँ,
मेरी मंज़िलें चाहे जो भी हो,वाहा तुझसे ही मुलाक़ात हो....
इस साल में वो बात हो...

मैं खुद से पहले तेरा नाम लूँ, मेरी याद में तू हो इस कदर,
तेरी दीद हो मेरी प्रीत हो, मेरा हर कदम तेरी दर-बदर..
एक तुझसे ही मेरी मात हो, मेरी ज़िंदगी वो बिसात हो....
इस साल में वो बात हो... इस साल में वो बात हो...||

Monday, November 22, 2010

in contunation to...koi deewana kehta hai..

मेरी चाहत नही तुम के चाह कर तुमको भुला दूँगा, मेरी मन्नत हो तुम ये फ़ैसला रब को सुना दूँगा|
मेरी पेशानियों पे भी हरफ़ है तेरे सद्को का, इबादत का शबाब हो तुम, तुम्हे खुद में मिला दूँगा ||

Muzrim ka mujhe naam na de...

मैं तुझको देखता हूँ ये मुझे इल्ज़ाम ना दे, तेरा आशिक़ हूँ एक मुजरिम का मुझे नाम ना दे ||

मैने अपने रब के रूबरू रक्खा है तुझे, मेरी इबादत को तू उनसियत का पैगाम ना दे ||

तेरी हर इक ख्वाइश पे फ़ना हूँ ए दोस्त, ले मैं रुक्सत हुआ मसरूफ़ियत का हरफ़ांम ना दे ||

तेरे साए को छू कर सजदे किया करता है “गौरव”,रूठ जा तू भले मुझसे मगर बेगानो सी पहचान ना दे ||

मेरे मौला ये करता हूँ मैं इलतज़ा तुझसे,लबों पे मेरे और कोई नाम ना दे ||

Jab main chala jaaunga ...

कल तेरे शहर से इतनी दूर चला जाऊँगा, किसी धुन्द्ली सी परच्छाई में नज़र आऊंगा…||

तेरी आँखों में देखे हैं क़ैद आस्मा-ओ-ज़मीन,इस फलक से परे कहीं कोई दुनिया बसाऊंगा ||

जानता हूँ कि तू मेरा मुंतज़ीर नही अब, फिर भी तेरे दर पे अपनी नज़र छोड़ जाऊंगा..||

सोचा था क रास आएँगी ये ये इश्क़ की गलियाँ, इन्ही गलियों में कहीं दिल को छोड़ जाऊंगा..||

तेरी चाहत का सबक इस कदर साथ रक्खा है, चाहतों में कभी ना फिर खुद को देख पाऊंगा ||

मेरे होठों से निकली हुई हर इक फरियाद में तू है, ये लब जब तक कहेंगे इलतज़ा-ए-दीद गाऊँगा ||

नही वादा किया के तेरी सुबह बन के आऊंगा, मगर जब भी तेरी शब होगी मैं लौ में भी जल जाऊंगा ||

शबब मदमस्त निगाहों का जानता नही था मैं, नशा तेरी नज़र का किस कदर खुद से उतारूँगा ||

मैं तेरी नैमतों के हूँ काबिल नही शायद, तेरी हर इक शै पे मैं ये अपनी जाँ लुटाऊंगा ||

तू वो सुराही है जो रखती है आब-ए-हयात, मैं प्याला हूँ,या भर जाऊंगा या फिर टूट जाऊंगा ||