कल तेरे शहर से इतनी दूर चला जाऊँगा, किसी धुन्द्ली सी परच्छाई में नज़र आऊंगा…||
तेरी आँखों में देखे हैं क़ैद आस्मा-ओ-ज़मीन,इस फलक से परे कहीं कोई दुनिया बसाऊंगा ||
जानता हूँ कि तू मेरा मुंतज़ीर नही अब, फिर भी तेरे दर पे अपनी नज़र छोड़ जाऊंगा..||
सोचा था क रास आएँगी ये ये इश्क़ की गलियाँ, इन्ही गलियों में कहीं दिल को छोड़ जाऊंगा..||
तेरी चाहत का सबक इस कदर साथ रक्खा है, चाहतों में कभी ना फिर खुद को देख पाऊंगा ||
मेरे होठों से निकली हुई हर इक फरियाद में तू है, ये लब जब तक कहेंगे इलतज़ा-ए-दीद गाऊँगा ||
नही वादा किया के तेरी सुबह बन के आऊंगा, मगर जब भी तेरी शब होगी मैं लौ में भी जल जाऊंगा ||
शबब मदमस्त निगाहों का जानता नही था मैं, नशा तेरी नज़र का किस कदर खुद से उतारूँगा ||
मैं तेरी नैमतों के हूँ काबिल नही शायद, तेरी हर इक शै पे मैं ये अपनी जाँ लुटाऊंगा ||
तू वो सुराही है जो रखती है आब-ए-हयात, मैं प्याला हूँ,या भर जाऊंगा या फिर टूट जाऊंगा ||
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