Monday, November 22, 2010

in contunation to...koi deewana kehta hai..

मेरी चाहत नही तुम के चाह कर तुमको भुला दूँगा, मेरी मन्नत हो तुम ये फ़ैसला रब को सुना दूँगा|
मेरी पेशानियों पे भी हरफ़ है तेरे सद्को का, इबादत का शबाब हो तुम, तुम्हे खुद में मिला दूँगा ||

Muzrim ka mujhe naam na de...

मैं तुझको देखता हूँ ये मुझे इल्ज़ाम ना दे, तेरा आशिक़ हूँ एक मुजरिम का मुझे नाम ना दे ||

मैने अपने रब के रूबरू रक्खा है तुझे, मेरी इबादत को तू उनसियत का पैगाम ना दे ||

तेरी हर इक ख्वाइश पे फ़ना हूँ ए दोस्त, ले मैं रुक्सत हुआ मसरूफ़ियत का हरफ़ांम ना दे ||

तेरे साए को छू कर सजदे किया करता है “गौरव”,रूठ जा तू भले मुझसे मगर बेगानो सी पहचान ना दे ||

मेरे मौला ये करता हूँ मैं इलतज़ा तुझसे,लबों पे मेरे और कोई नाम ना दे ||

Jab main chala jaaunga ...

कल तेरे शहर से इतनी दूर चला जाऊँगा, किसी धुन्द्ली सी परच्छाई में नज़र आऊंगा…||

तेरी आँखों में देखे हैं क़ैद आस्मा-ओ-ज़मीन,इस फलक से परे कहीं कोई दुनिया बसाऊंगा ||

जानता हूँ कि तू मेरा मुंतज़ीर नही अब, फिर भी तेरे दर पे अपनी नज़र छोड़ जाऊंगा..||

सोचा था क रास आएँगी ये ये इश्क़ की गलियाँ, इन्ही गलियों में कहीं दिल को छोड़ जाऊंगा..||

तेरी चाहत का सबक इस कदर साथ रक्खा है, चाहतों में कभी ना फिर खुद को देख पाऊंगा ||

मेरे होठों से निकली हुई हर इक फरियाद में तू है, ये लब जब तक कहेंगे इलतज़ा-ए-दीद गाऊँगा ||

नही वादा किया के तेरी सुबह बन के आऊंगा, मगर जब भी तेरी शब होगी मैं लौ में भी जल जाऊंगा ||

शबब मदमस्त निगाहों का जानता नही था मैं, नशा तेरी नज़र का किस कदर खुद से उतारूँगा ||

मैं तेरी नैमतों के हूँ काबिल नही शायद, तेरी हर इक शै पे मैं ये अपनी जाँ लुटाऊंगा ||

तू वो सुराही है जो रखती है आब-ए-हयात, मैं प्याला हूँ,या भर जाऊंगा या फिर टूट जाऊंगा ||