कभी हर बात में मुझ को ज़हन में याद करते थे...
कुछ रोज़ से वो भी मेरे ठिकाने नहीं आते..|
नहीं आते तो ना आयें मगर ये जान लें वो भी..
हमें ये इश्क़ के रौशन दिए, बुझाने नहीं आते..|
उन्ही गुज़रे दिनों की याद में दिन बीत जाते हैं..मगर
अफ़सोस की फिर लौट कर वो गुज़रे ज़माने नही आते,..|
बड़े नादान हैं वो, जो की... मुझ से रूठ जाते हैं...
उन्हें तो ठीक से.. आशिक़ भी आज़माने नहीं आते...|
नहीं खुद ग़र्ज़ मैं इतना की उनको को माँग लूँ रब से..
मुझे सौदेबाज़ी के ये दस्तूर निभाने नही आते....|
हमीं से बरकरार रक्खा है..,खुदा ने मुफ़लिसी का दौर
यूँ ही बेवजह.. तो दुनिया में भी... दीवाने नही आते...|
की तेरे साथ मैं भी मुस्कुरा देता, मगर साकी...
मुझे अपने ही चहेरे के दो रंग दिखाने नही आते..||
No comments:
Post a Comment