जिन रास्तों पे मैं आ गया, कभी गौर उनपे करा नहीं,
कभी लौट कर भी आउन्गा,अभी दिल फकीरी से भरा नहीं
ये जो खाली खाली सा वक़्त है...ये जो ज़िंदगी में मज़ा नही,
ये तो दिल्लगी का इनाम है...किसी गुनाह की ये सज़ा नही..
ख़ुदग़र्ज़ इस दुनिया से अब, मेरा कोई वास्ता नही...
अब तू ही एक मक़ाम है, कहीं और रास्ता नही,
नहीं चाहतों पे टीका, हुआ मेरा इश्क़ बेवफा नहीं,
तुझसे जो तुझको माँग लूँ, ये हक़ भी तूने दिया नही
जा, जी ले, अपनी ज़िंदगी, कभी मैं तो तुझसे जुदा नही..
तुझे, तुझसा होने से रोक दूं, मैं दूसरो की तरह नही,
मेरा इश्क़ ही मेरी बंदगी, मुझे क़ायदों का पता नही
ये बंदगी ही मेरा "ज़ुर्म" है.. मेरी और कोई.. खता नही...||
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