Friday, September 13, 2013

लगता है मेरे शहर में अब रात नही होती..


कुछ रोज़ से इन सितारों से  मुलाकात नही होती,
लगता है मेरे शहर में 'शायद' अब रात नही होती..|
इसे मैं अपनी बदनसीबी कहूँ... या कहूँ... उनका इख्तियार
नज़रें तो मिला करती हैं मगर अब बात नहीँ होती...||

और भी है..


मेरे चेहरे में छुपि कुछ बाकी रवानी और भी है,
खुश्क निगाहों में बचा तोड़ा सा पानी और भी है..
ये जान ले ओ खुद को ...मुझ से जुदा जानने वाले ज़रा,
तेरी कहानी से जुड़ी, इक मेरी कहानी और भी है..

Wednesday, July 31, 2013

"मैं",कुछ भी नहीँ,..,

एक भी लम्हा मेरा, जाता ऩहीँ, तेरे बगैर,
बस यही मुश्क़िल है मेरी.. और मुश्क़िल.. कुछ भी ऩहीँ

सीने में है इक समंदर, और लब खामोश है,
बोलने को दरमियाँ... अब बाकी रहा... कुछ भी ऩहीँ,

भूल जाता हूँ मैं अक्सर, अपनी ही पहचान को
बस तू ही तू याद है, और याद अब, कुछ भी नही..,

मुझको बस मालूम है की...मैं तो तेरा हो गया,
फिर मैं किस किस का हुआ, मुझको पता कुछ भी ऩहीँ
...

अर्श में "तू" , फर्श में "तू" , और आईने में "तू" ,
"तू" ही "तू" मुझ में समाया, मुझ में मैं,कुछ भी नहीँ,..,

रात दिन माँगूँ  दुआएं बस तेरे ही वास्ते,
जो भी है.. अब "तू" ही है...और "मैं" .... कुछ भी नही

Saturday, July 27, 2013

मेरी बंदगी ही मेरा "ज़ुर्म" है.. मेरी और कोई.. खता नही...||



जिन रास्तों पे मैं आ गया, कभी गौर उनपे करा नहीं,
कभी लौट कर भी आउन्गा,अभी दिल फकीरी से भरा नहीं

ये जो खाली खाली सा वक़्त है...ये जो ज़िंदगी में मज़ा नही,
ये तो दिल्लगी का इनाम है...किसी गुनाह की ये सज़ा नही..

ख़ुदग़र्ज़ इस दुनिया से अब, मेरा कोई वास्ता नही...
अब तू ही एक मक़ाम है, कहीं और रास्ता नही,

नहीं चाहतों पे टीका, हुआ मेरा इश्क़ बेवफा नहीं,
तुझसे जो तुझको माँग लूँ, ये हक़ भी तूने दिया नही

जा, जी ले, अपनी ज़िंदगी, कभी मैं तो तुझसे जुदा नही..
तुझे, तुझसा होने से रोक दूं, मैं  दूसरो की तरह नही,

मेरा इश्क़ ही मेरी बंदगी, मुझे क़ायदों का पता नही
ये बंदगी ही मेरा "ज़ुर्म" है.. मेरी और कोई.. खता नही...||

Friday, July 26, 2013

हम दिल हारने आते हैं हराने नहीं आते


कभी हर बात में मुझ को ज़हन में याद करते थे...
कुछ रोज़ से वो भी मेरे ठिकाने नहीं आते..|

नहीं आते तो ना आयें मगर ये जान लें वो भी..
हमें ये इश्क़ के रौशन दिए, बुझाने नहीं आते..|

उन्ही गुज़रे  दिनों की याद में दिन बीत जाते हैं..मगर
अफ़सोस की फिर लौट कर वो गुज़रे ज़माने नही आते,..|

बड़े नादान हैं वो, जो की... मुझ से रूठ जाते हैं...
उन्हें तो ठीक से.. आशिक़ भी आज़माने नहीं आते...|

नहीं खुद ग़र्ज़ मैं इतना की उनको को माँग लूँ रब से..
मुझे सौदेबाज़ी के ये दस्तूर निभाने नही आते....|

हमीं से बरकरार रक्खा है..,खुदा ने मुफ़लिसी का दौर
यूँ ही बेवजह.. तो दुनिया में भी... दीवाने नही आते...|

की तेरे साथ मैं भी मुस्कुरा देता, मगर साकी...
मुझे अपने ही चहेरे के दो रंग दिखाने नही आते..||

Saturday, July 13, 2013

दुआ... "मेरे" लिए



मैं जैसा हूँ...मैं जिस में हूँ... मुझे वैसे ही रहने दे...|

मेरी हर बात को.... भूला सा... इक  किस्सा ही रहने दे...||



मेरे हिस्से में अब तक जो..... समंदर थे, वो सूखे थे...|

मैं प्यासा था... इक अरसे से... मुझे दरिया में बहने दे...||



मिलेगा वक़्त शायद फिर नही, ये ज़िक्र करने का...|

मेरे दिल में दुआ... "मेरे" लिए... जो है वो कहने दे...||



मेरे मौला, गुनाहों की सज़ा कुछ ऐसी दे मुझको...|

मुझे तनहाईयाँ भी दे.. और ज़िंदा भी रहने दे.....||

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Wednesday, June 26, 2013

कुछ ऐसे जी रहा हूँ


बेरूख़ी से.. बस ये काम किए जा रहा हूँ मैं....
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||

तेरी इनायतों से हैं... या हैं.. मेरे नसीब से..
ऱक्खे हैं इन आँखों में कुछ आँसू अजीब से...|
हर आँसू को आँखों में पिए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||

मेरे इश्क़ को इबादत का कहीं नाम मिल गया...
फिर इश्क़ को आशिक़ी का भी इल्ज़ाम मिल गया...|
ये इल्ज़ाम भी खुद पे ही लिए जा रहा हूँ मैं....
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं...||


कशिश कोई ऐसी भी है.. मेरे जीने में अभी... बाकी
ना चाहते हुए भी... तन्हा हूँ मैं ..ए साकी...|
जैसे सज़ा मुक़म्मल कोई लिए जा रहा हूँ मैं..
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||


मेरे हर इक सजदे में बस तेरा ही ज़िक्र हो...
ए...मेरे खुदा तुझको भी कभी... मुझसा ही इश्क़ हो..|
खुदा को इश्क़... और इश्क़ को ईमान... किए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||


इश्क़ में किस्मत के मुबारक सितम सभी...
ए दोस्त हौंसला यहाँ मुझ मे भी कम नही ...|
ज़ख़्म खुद के खुद से ही सीए जा रहा हूँ मैं...
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....


खुद को मिटा के जीने की.. इक चाहत हुई मुझको...
फिर खैर-ए-सनम को जीने की आदत लगी मुझको..|
खुद को.. इसी आदत पे दिए जा रहा हूँ मैं
कुछ ऐसे जी रहा हूँ की ...बस जिए जा रहा हूँ मैं....||